
‘कप्तान लक्ष्मीका जन्म २४.१०.१९१४ को मद्रासमें (चेन्नईमें) हुआ था । इ.स. १९३८ में २४ वर्षकी आयुमें उन्होंने एम.बी.बी.एस. की परिक्षामें उत्तीर्ण की । सिंगापुरमें नेताजी सुभाषचंद्रजीके भाषणोंसे प्रभावित होकर वह आजाद हिंद सेनाकी ओर आकर्षित हुर्इं । २२ अक्टूबरको झांसीकी रानी लक्ष्मीबाईका जन्मदिवस था । इसी दिन सन् १९४३ में सुभाषबाबूने आजाद हिंद फौजकी स्त्रियोंकी शाखा ‘झांसी रानी लक्ष्मी’ दलकी स्थापना की । इस दलका नेतृत्व लक्ष्मीने संभाला । कप्तान लक्ष्मी अपनी अलग-अलग टुकडियोंके साथ (गुटको लेकर) प्रत्यक्ष रणभूमिपर अंग्रेजी सेनासे लडनेके लिए निकल पडी; परंतु उस समय उनके पास पर्याप्त रसद (कच्चा अनाज), कपडे, बारुद नहीं थे । जिस भागमें उन्हें जाना था, वह चट्टानोंसे भरा घने जंगलका क्षेत्र था ।
सवेरे मुहिमपर प्रस्थान करनेका आदेश आया । उस समय अंग्रेजी सेना लगभग एक मील दूर थी, तब सेनाद्वारा लक्ष्मी दलपर अचानकसे आक्रमण हुआ । तुरंत कप्तान लक्ष्मीने प्रत्युत्तर देनेका आदेश दिया । ‘झांसीr रानी’ दलने अंग्रेजी सेनापर आक्रमण किया, बंदूकें, गोलियां चारों दिशाओंमें चलने लगीं, तोपोंसे भयंकर आगके गोले शत्रुपर बरसने लगे । ‘जय हिन्द’, ‘इन्कलाब जिंदाबाद’, ‘आजाद हिन्द जिंदाबाद’ की घोषणाओंसे अंग्रेजी सेना कांप उठी । ऐसी जोशभरी घोषणाओंके बीच तोंपे चल ही रही थी । कप्तान लक्ष्मीकी ‘झांसी रानी’ विजयी हुई । हिन्दुस्थान एवं ब्रह्मदेशकी सीमापर हुई इस लडाईमें ‘झांसी रानी’ दलने अंग्रजोंके पुरुषोंके शूर दलको घुटने टेकनेपर विवश कर दिया ।’