‘एक लडका काशीके ‘हरिश्चंद्र हाइस्कूल’में पढता था । उसका गांव काशीसे ८ मील दूर था । वो वहांसे प्रतिदिन पैदल पाठशाला जाता । रास्तेमें गंगा नदी पार करनी पडती थी । उस समय गंगा पार करवानेके लिए नाववाला दो पैसे लेता था । दो पैसे जानेके और दो वापस आनेके, यानी एक आना; इस हिसाबसे प्रतिमाह लगभग दो रुपये । उस समय सोनेका मूल्य सौ रुपये प्रति तोलेसे भी न्यून था, इसलिए यह राशी भी बहुत अधिक लगती थी ।
माता-पितापर पैसोंका दबाव न आए, ऐसा सोचकर उस बालकने तैरना सीख लिया । गर्मी, बरसात अथवा ठंडी हो, किसी भी ऋतुमें वह गंगा तैरकर पार करता था । बहुत दिन बीत गए । एक दिन पौष माहकी हाथ-पांव गला देनेवाली ठंडीमें वह सुबह पाठशाला जाने हेतु पानीमें उतरा । तैरते हुए नदीके मध्यभागमें पहुंचा । एक नावमें सवार होकर कुछ यात्री नदी पार कर रहे थे । उन्हें लगा कि एक छोटा लडका नदीमें डूब रहा है, इसलिए उन्होंने नाव उसके समीप ली और उसे नावमें खींच लिया । उस लडकेके मुखपर तिल मात्र
भी डर अथवा चिंता नहीं थी । उसका असामान्य साहस देखकर सब लोग आश्चर्यचकित हो गए !
लोग : अभी तुम डूबकर मर जाते तो ? ऐसा साहस करना योग्य नहीं !
लडका : साहस एक गुण है । साहसी होना ही चाहिए । जीवनमें विघ्न-संकट आएंगे, उनका सामना करनेके लिए और उनपर विजय प्राप्त करनेके लिए साहस आवश्यक है । अभीसे साहसी नहीं बनूंगा, तो जीवनमें बडे-बडे काम वैâसे कर पाऊंगा ?
लोग : ऐसे समयपर तैरने क्यों आए हो ? दोपहरमें क्यों नहीं आते ?
लडका : मैं तैरनेके लिए नदीमें नहीं आया हूं । मैं तो पाठशाला जा रहा हूं ।
लोग : नावमें बैठकर जाओ !
लडका : प्रतिदिन चार पैसे लागते है । मुझे मेरे गरीब माता-पितापर बोझ नहीं बनना है । मुझे अपने पैरोंपर खडा होना है । यदि मेरा खर्च बढ गया, तो माता-पिताकी चिंता बढेगी । उन्हें घर चलानेमें कठिनाई होगी ।
लोग उसकी ओर आदरसे देखते ही रह गए । वही लडका आगे जाकर भारतका प्रधानमंत्री बना । कौन था वह बालक ? वे थे लाल बहादुर शास्त्री । इतने बडे पदपर होते हुए भी उनमें सच्चाई, निर्मलता, प्रामाणिकता, साहस, साधापन, देशप्रेम इत्यादि गुण थे । वे सदाचारके जीवित उदाहरण थे । ऐसे महापुरुष अल्प काल राज्य करनेपर भी जनतापर अपना प्रभाव छोड जाते हैं ।’
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