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Tuesday, February 26, 2013

Ashu Parmar

  8:53 AM Gramoday Seva Portal   No comments


Ashu Parmar Sitamau

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Sunday, April 15, 2012

युग का दीपक

  7:25 AM Gramoday Seva Portal   1 comment

वह था मर्द जो अंतिम क्षण तक अड़ा रहा
वह था सिंह जो उस वेदी पर खड़ा रहा
बलिदान का क्षण वह अनोखा
वो वीर फंदे को चूम रहा था
चमक उठा मस्तक
दमक रहा मुख उज्जवल था
वह तूफ़ान सैलाब नसों मैं
दिल मैं भाव वासंती था
देखा न देखा ऐसा यह वीरों का वसंत
मर मिटने की यह भावना
ये अनुराग ये प्रेम महान
उन्नत होती संस्कृति तुमसे
तुम्हारा सदा रहे दिनमान
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Saturday, April 14, 2012

हिम्मत करने वालो की हार नहीं होती Deven

  10:44 PM Gramoday Seva Portal   No comments
हिम्मत करने वालो की हार नहीं होती
लहरों से डर कर नैया पार नहीं होती.
नन्ही चींटी जब दाना ले कर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना न अखरता है
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
डुबकियाँ सिन्धु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौट आता है
मिलते न सहज ही मोटी पानी में
बढ़ता दूना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन त्यागो तुम
संघर्ष करो मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती.
(डॉ0 हरिवंश राय बच्चन की कविता से आभार सहित)
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Wednesday, April 11, 2012

shiksha

  10:02 PM Gramoday Seva Portal   No comments
shiksha deti nai hai manjil
naya path,naya ujiara,
jaise bahti nadiya ki dhara,
ja milti sagar se hai.
wahi ashiksha bebas dikhati
mano ruka huwa jal hai
shiksha naya chhor hai to
ashiksha manjhadhar hai
jaha dar sirf har hai,
ha ! shiksha ek balwan hai to,
ashiksha nirbal bhikhari,
jo sada shiksha se hai hari
sada hari.
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Monday, August 22, 2011

मालवी बोली

  12:52 AM Gramoday Seva Portal   Place   No comments

 
भारत के पश्चिम मध्यप्रदेश में विन्ध्य की तलहटी में जो पठार है उसे कम से कम दो हज़ार वर्षों से मालव (मालवा) कहा जा रहा है।
यहॉं के लोग भाषा और पोषाक से कहीं भी पहचान में आते रहे। मौसम की यहॉं सदा कृपा रही है।
इसीलिए सदा सुकाल के सुरक्षित क्षेत्र के रूप में इसकी सर्वत्र मान्यता रही है।
इस मालवा की बोली मालवी कहलाती है। वह पन्द्रह ज़िलों के प्रायः डेढ़ करोड़ लोगों की भाषा है।
मालवा क्षेत्र की सदा से राजनीतिक पहचान रही है।
भौगोलिक समशीतोष्णता का आकर्षण रहा है।
धार्मिक उदारता, सामाजिक समभाव, आर्थिक निश्चिन्तता, कलात्मक समृद्धि से सम्पन्न विक्रमादित्य, भर्तृहरि, भोज जैसे महानायकों की यह भूमि रही है जहॉं कालिदास, वराहमिहिर जैसे दैदीप्यमान नक्षत्रों ने साधना की।
मालवा के वसुमित्र ने विदेशी ग्रीकों को, विक्रमादित्य ने शकों तथा प्रकाश धर्मा और यशोधर्मा ने हूणों को पराजित कर स्वतंत्रता संग्राम की परंपरा पुरातनकाल से ही स्थापित कर दी थी।
मालवा का अपना सर्वज्ञात विक्रम संवत् भी है।
यहॉं भीमबेटका जैसे विश्वविख्यात पुरातत्व के स्थान हैं।
उज्जयिनी, विदिशा, महेश्वर, धार, मन्दसौर जैसे यहॉं पारम्परिक सांस्कृतिक केन्द्र हैं जहॉं निरन्तर जीवन संस्कार पाता रहा।
यहॉं की बोली मालवी की चिरकाल से समृद्धि होती रही जो अब क्रमशः उजागर होती जा रही है।
मालवी का लोक साहित्य अत्यंत समृद्ध है। लोक नाट्य माच, गीत, कथा वार्ताएँ, पहेलियॉं, कहावतें आदि मालवी की अपनी शक्ति है।
इसकी शब्द सम्पदा अत्यंत समृद्ध है।
इसकी उच्चारण पद्धति नाट्शास्त्र युग से आज तक वैसी ही है।
तुलनात्मक अध्ययन द्वारा मालवी बोली तथा संस्कृति की शक्ति तथा व्यापकता को अभी पूरी तरह प्रकट करने के लिए और प्रयासों की अपेक्षा है।
नई हवा में क्षरण होती मालवी लोक संस्कृति की विभिन्न धाराओं की सुरक्षा के लिए त्वरित उपाय करने होंगे।
इस सबके लिए साहित्य-संस्कृति के समर्पित मर्मज्ञ साधकों के साथ ही राजनीतिक-प्रशासनिक समर्थ सम्बल की भी अत्यंत आवश्यकता है।
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Saturday, August 20, 2011

आजाद हिंद सेनाकी कप्तान ‘लक्ष्मी’

  7:02 AM Gramoday Seva Portal   Socho   No comments

‘कप्तान लक्ष्मीका जन्म २४.१०.१९१४ को मद्रासमें (चेन्नईमें) हुआ था । इ.स. १९३८ में २४ वर्षकी आयुमें उन्होंने एम.बी.बी.एस. की परिक्षामें उत्तीर्ण की । सिंगापुरमें नेताजी सुभाषचंद्रजीके भाषणोंसे प्रभावित होकर वह आजाद हिंद सेनाकी ओर आकर्षित हुर्इं । २२ अक्टूबरको झांसीकी रानी लक्ष्मीबाईका जन्मदिवस था । इसी दिन सन् १९४३ में सुभाषबाबूने आजाद हिंद फौजकी स्त्रियोंकी शाखा ‘झांसी रानी लक्ष्मी’ दलकी स्थापना की । इस दलका नेतृत्व लक्ष्मीने संभाला । कप्तान लक्ष्मी अपनी अलग-अलग टुकडियोंके साथ (गुटको लेकर) प्रत्यक्ष रणभूमिपर अंग्रेजी सेनासे लडनेके लिए निकल पडी; परंतु उस समय उनके पास पर्याप्त रसद (कच्चा अनाज), कपडे, बारुद नहीं थे । जिस भागमें उन्हें जाना था, वह चट्टानोंसे भरा घने जंगलका क्षेत्र था ।

सवेरे मुहिमपर प्रस्थान करनेका आदेश आया । उस समय अंग्रेजी सेना लगभग एक मील दूर थी, तब सेनाद्वारा लक्ष्मी दलपर अचानकसे आक्रमण हुआ । तुरंत कप्तान लक्ष्मीने प्रत्युत्तर देनेका आदेश दिया । ‘झांसीr रानी’ दलने अंग्रेजी सेनापर आक्रमण किया, बंदूकें, गोलियां चारों दिशाओंमें चलने लगीं, तोपोंसे भयंकर आगके गोले शत्रुपर बरसने लगे । ‘जय हिन्द’, ‘इन्कलाब जिंदाबाद’, ‘आजाद हिन्द जिंदाबाद’ की घोषणाओंसे अंग्रेजी सेना कांप उठी । ऐसी जोशभरी घोषणाओंके बीच तोंपे चल ही रही थी । कप्तान लक्ष्मीकी ‘झांसी रानी’ विजयी हुई । हिन्दुस्थान एवं ब्रह्मदेशकी सीमापर हुई इस लडाईमें ‘झांसी रानी’ दलने अंग्रजोंके पुरुषोंके शूर दलको घुटने टेकनेपर विवश कर दिया ।’
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अपने गरीब माता-पितापर बोझ न बनकर उनके पैसे बचानेके लिए प्रतिदिन गंगा नदी तैरकर पाठशालामें जानेवाला असामान्य साहसी बालक लाल बहादुर शास्त्री !

  6:59 AM Gramoday Seva Portal   Socho   No comments
‘एक लडका काशीके ‘हरिश्चंद्र हाइस्कूल’में पढता था । उसका गांव काशीसे ८ मील दूर था । वो वहांसे प्रतिदिन पैदल पाठशाला जाता । रास्तेमें गंगा नदी पार करनी पडती थी । उस समय गंगा पार करवानेके लिए नाववाला दो पैसे लेता था । दो पैसे जानेके और दो वापस आनेके, यानी एक आना; इस हिसाबसे प्रतिमाह लगभग दो रुपये । उस समय सोनेका मूल्य सौ रुपये प्रति तोलेसे भी न्यून था, इसलिए यह राशी भी बहुत अधिक लगती थी ।

माता-पितापर पैसोंका दबाव न आए, ऐसा सोचकर उस बालकने तैरना सीख लिया । गर्मी, बरसात अथवा ठंडी हो, किसी भी ऋतुमें वह गंगा तैरकर पार करता था । बहुत दिन बीत गए । एक दिन पौष माहकी हाथ-पांव गला देनेवाली ठंडीमें वह सुबह पाठशाला जाने हेतु पानीमें उतरा । तैरते हुए नदीके मध्यभागमें पहुंचा । एक नावमें सवार होकर कुछ यात्री नदी पार कर रहे थे । उन्हें लगा कि एक छोटा लडका नदीमें डूब रहा है, इसलिए उन्होंने नाव उसके समीप ली और उसे नावमें खींच लिया । उस लडकेके मुखपर तिल मात्र
भी डर अथवा चिंता नहीं थी । उसका असामान्य साहस देखकर सब लोग आश्चर्यचकित हो गए !

लोग : अभी तुम डूबकर मर जाते तो ? ऐसा साहस करना योग्य नहीं !

लडका : साहस एक गुण है । साहसी होना ही चाहिए । जीवनमें विघ्न-संकट आएंगे, उनका सामना करनेके लिए और उनपर विजय प्राप्त करनेके लिए साहस आवश्यक है । अभीसे साहसी नहीं बनूंगा, तो जीवनमें बडे-बडे काम वैâसे कर पाऊंगा ?
लोग : ऐसे समयपर तैरने क्यों आए हो ? दोपहरमें क्यों नहीं आते ?

लडका : मैं तैरनेके लिए नदीमें नहीं आया हूं । मैं तो पाठशाला जा रहा हूं ।
लोग : नावमें बैठकर जाओ !
लडका : प्रतिदिन चार पैसे लागते है । मुझे मेरे गरीब माता-पितापर बोझ नहीं बनना है । मुझे अपने पैरोंपर खडा होना है । यदि मेरा खर्च बढ गया, तो माता-पिताकी चिंता बढेगी । उन्हें घर चलानेमें कठिनाई होगी ।

लोग उसकी ओर आदरसे देखते ही रह गए । वही लडका आगे जाकर भारतका प्रधानमंत्री बना । कौन था वह बालक ? वे थे लाल बहादुर शास्त्री । इतने बडे पदपर होते हुए भी उनमें सच्चाई, निर्मलता, प्रामाणिकता, साहस, साधापन, देशप्रेम इत्यादि गुण थे । वे सदाचारके जीवित उदाहरण थे । ऐसे महापुरुष अल्प काल राज्य करनेपर भी जनतापर अपना प्रभाव छोड जाते हैं ।’
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